
हम सभी नित्य जीवन मे पूजा -पाठ करते है परंतु कुछ लोगो की शिकायत होती है,
की हमने पूजा पाठ किया किन्तु उचित फल नही मिला , मुख्यतः इसके कुछ कारण होते है |
मनुष्य का जन्म धरती पर अपने-अपने कर्मो को भोगने के लिए हुआ ,
कोई अच्छे कर्मों को भोगने आया है और कोई बुरे कर्मो को भोगने ,
कुछ लोग होते है जो बिल्कुल पूजा पाठ नही करते है फिर भी उन्हें उचित सफलता मिल जाती है,
परंतु कुछ लोगो ऐसे भी होते है जिनको पूजा -पाठ करने के पश्चात भी उचित सफलता नही मिल पाती है…
ये कर्मो के आधार पर ही निर्भर है अच्छे कर्मों को भोगने वाले को कम पूजा -पाठ
में अच्छी सफलता एवं बुरे कर्मो को भोगने वाले को ज्यादा पूजा -पाठ में भी कम सफलता मिलती है ,
क्योंकि बुरे कर्म वाले व्यक्ति को अपने पूर्ण बुरे कर्मो को भोगना है ,
पूजा पाठ करने से व्यक्ति अपने बुरे कर्मो के द्वारा आए दुःखो को कम करता है।
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पूजा पाठ करने के कुछ नियम होते है अगर हम नियमो का पालन ना करके पूजा पाठ करें
तो हमे पूर्ण फल नही मिलता, अतः हमें नित्य पूजा पाठ के नियमो का पालन करना चाहिए :-
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प्रातः काल उठते ही अपने ईष्ट देव का स्मरण करें और एक अच्छे दिन हेतु प्रार्थना करे।
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दोनो हथेली को मिलाकर उसकी तरफ देखते हुए मंत्र :-
“कराग्रे वस्ते लक्ष्मी कर मध्ये सरस्वती। कर मुले तू गोविंदः प्रभाते करदर्शनम।।”
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फिर दाहिना पैर जमीन पर रख कर उठ जाए।
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सर्वप्रथम गणेशजी का स्मरण करें ।
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सूर्यदेव को अर्ध्य देने व सूर्य उपासना की सनातन धर्म मे विशेष महत्व है,
इसलिए सूर्यदेव को प्रतिदिन नियम से अर्ध्य देना चाहिए।
घर मे तुलसी का पौधा अवश्य लगाए एवं सूर्यदेव के बाद तुलसी माता को जल दे।
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अपने घर मे भगवान का स्थान अलग से ईशान कोण में बनाए
या फिर ऐसे स्थान पर रखे जिसमे भगवान का मुख पश्चिम में एवं पूजा करने वाले का पूर्व में हो।
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अपने मंदिर को साफ करें। पूजा घर में जल का एक लोटा अवश्य रखे।
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शिवजी, गणेशजी और भैरवजी को तुलसी नहीं चढ़ानी चाहिए |
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तुलसी के पत्तों को 11 दिनों तक बासी नहीं माना जाता है.
इसकी पत्तियों पर हर रोज जल छिड़कर पुन: भगवान को अर्पित किया जा सकता है|
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रविवार, एकादशी, द्वादशी, संक्रान्ति तथा संध्या काल में तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ना चाहिए|
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दूर्वा (एक प्रकार की घास) रविवार को नहीं तोड़नी चाहिए.|
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मंगलवार और रविवार को पीपल के वृक्ष में जल अर्पित नहीं करना चाहिए|
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गणेश जी ,सूर्य देव , दुर्गा माता , शिव और विष्णु, ये पंचदेव कहलाते हैं,
इनकी पूजा सभी कार्यों में अनिवार्य रूप से की जानी चाहिए,
प्रतिदिन पूजन करते समय इन पंचदेव का ध्यान करना चाहिए. इससे लक्ष्मी कृपा और समृद्धि प्राप्त होती है|
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ताम्रपत्र में दूध डाल कर शिवलिंग पर अभिषेक नही करना चाहिए , ताम्रपत्र में दूध विष बन जाता है|
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अपने जीवन मे किसी एक मंत्र को अवश्य धारण करना चाहिए,
जिसकी आप प्रतिदिन 108 बार 1 माला जाप करे। अन्य जो पाठ आपके ईष्ट देव के करे अंत मे आरती करें।
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मंदिर हमेशा ईशान कोण में ही होना चाहिए।
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गणेश, कुबेर और माँ दुर्गा का मुख सदैव पश्चिम दिशा में ही रखे।
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हनुमान जी का मुख नैऋत्य कोण या दक्षिण दिशा में रखे।
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उग्र व तामसी देव प्रतिमाओ का मुख पश्चिम व दक्षिण दिशा में ही रखे।
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अंगूल से बड़ी मूर्ति घर के पूजा स्थान में नही रखना चाहिए क्योंकि उससे बड़ी मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा आवश्यक होता है।
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मिट्टी की मूर्ति केवल गणेश जी एवं लक्ष्मी जी की ही रखे। (मंदिर में मिट्टी की मूर्ति 9 दिन से ज्यादा न रखे।) |
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परिवार के सदस्य के अलावा किसी अन्य व्यक्ति को पूजा स्थान में ना जाने दे।
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– गणेश जी के दाहिने और भगवान विष्णु के बाएं लक्ष्मी जी को रखे।
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शक्ति की मूर्ति पूजा का सही समय विशेष साधना हेतु रात्रि 9 से 12 के मध्य विशेष होता है।
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किसी खास पूजा के बाद दक्षिणा जरूर चढ़ाए ।
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दीपक कभी जमीन पर न लगाए सदैव अक्षत रख कर ऊपर दीपक रखे ।
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पूजा-पाठ समाप्त होने के पश्चात आपके द्वारा देवताओं की जो भी पूजा की गयी
उसे अपने दाएं हाथ मे जल ले कर
देवताओं के दाएं हाथ मे देना चाहिए,
एवं देवियों के बाएं हाथ मे देना चाहिए,
( उदारण :- दाएं हाथ मे जल ले कर मेरे द्वारा की गई
पूजा-पाठ देवताओं के दाएं हाथ मे समर्पित करता हो
एवं देवियों के बाएं हाथ मे समर्पित करता हो,
बोलकर जल जमीन पर छोड़ दे )
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आरती के पश्चात इंद्र भगवान का स्मरण करें
और सम्पूर्ण पूजा का फल आपको मिलने की प्राथना करे
हाथ मे जल लेकर जिस आसन पर पूजा की उस आसन के नीचे जमीन पर डालकर दोनो नेत्रो पर लगाए।
एवं पुजा मे ज्ञात अज्ञात होई गलती के लिए भगवान से माफी माग कर प्रभु को प्रणाम कर आसन हटा लें।
Inme se jyda tar main humesa karta hu…..
जी , धन्यवाद