
शनि देव जिनका नाम सुनते ही मनुष्य के मन मे डर आ जाता है , कि कही शनि देव की साढ़ेसाती या बुरा प्रभाव हमारे ऊपर ना लग जाए।
आमतौर पर ये बात कही जाती है कि जिस पर शनि साढ़ेसाती या ढय्या आ गई ,मतलब उसका बुरा समय प्रारंभ हो गया।
शनि देव का नाम सुनते अक्सर लोग भयभीत होने लग जाते है। डर सा लग जाता है कि कही शनि की दशा अंतर्दशा आने पर शनि हमारा बुरा ना कर दे।
आमतौर पर शनि को पापी और क्रूर माना गया है।
परंतु ऐसा नही है शनि न्यायाधीश है वह अच्छे व बुरे कर्मो का फल देने वाले ग्रह है ।
मान्यता है की कलयुग में जो जैसा कर्म करता है उसे वैसा ही फल इस जन्म में भोगना पड़ता है।
ये अच्छे और बुरा फल देने का कार्य शनि देव करते है। शनि देव कर्म प्रधान ग्रह है ।
हम जानेंगे क्या है न्यायाधीश की लीला ,
और उनके जीवन की कुछ महत्वपूर्ण बाते :-
शनि जयंति उपाय
कब और कैसे हुआ शनि देव का जन्म ?
क्यों चढ़ाया जाता है शनि देव को तेल ?
क्यों हनुमान जी की शरण मे जाने से शनि देव का बुरा प्रभाव समाप्त हो जाता है ?
केसे शनि देव साढ़ेसाती में मनुष्य को कष्ट देते है ?
शनि देव का अपने पिता सूर्य देव से मतभेद क्यों है ?
क्यों शनि देव की दृष्टि को अशुभ माना जाता है ?
कब और कैसे हुआ शनि देव का जन्म ?
स्कंदपुराण के काशीखंड के अनुसार राजा दक्ष की कन्या संज्ञा का विवाह सूर्य देव के साथ हुआ। संज्ञा सूर्य देवता के तेज को सहन नहीं कर पाती एवं उनके अत्यधिक तेज़ से संज्ञा परेशान थी ।
संज्ञा ने सूर्य देवता के तेज को कम करने के लिए बहुत प्रयत्न किए , दिन बीतते गए और संज्ञा के गर्भ से वैवस्वत मनु ,यमराज और यमुना ने जन्म लिया ।
सूर्य देवता के तेज से संज्ञा अब घबरा गई थी। जिसके बाद संज्ञा ने तय किया की वो तपस्या करके सूर्य देव के तेज़ को कम करेगी।
परंतु बच्चो के पालन औऱ सूर्य देव को इसकी भनक ना लगे। इसके लिए संज्ञा ने एक उपाय सोचा की वो अपनी छाया ( हमशक्ल ) पैदा करेगी।
संज्ञा ने अपनी छाया पैदा की और अपने बच्चो की देखभाल की जिम्मेदारी छाया को दी और छाया से कहा कि उनके बच्चो और पति सूर्य देव की देखभाल कुछ दिन वो करेगी ।
अब संज्ञा सूर्य देव का घर छोड़ अपने पिता के घर आ गई परंतु संज्ञा के पिता राजा दक्ष ने उनका साथ नही दिया और उन्हे वापस भेज दिया किन्तु संज्ञा वापस ना जा कर वन में चली गई ।
वन में घोड़ी का रूप धारण कर संज्ञा तपस्या में लीन हो गई ।
उधर सूर्य देव को जरा भी आभास नही हुआ की उनके साथ रहने वाली संज्ञा नही बल्कि उनकी छाया है ।छाया सूर्य देव के तेज से परेशान नही हुई ।
सूर्य देव और छाया के मिलन से शनि देव , मनु , तपती तीनो संतान ने जन्म लिया ।
●शनि देव को तेल क्यों चढ़ाया जाता है और हनुमान जी की शरण मे जाने से शनि देव का बुरा प्रभाव क्यों समाप्त हो जाता है ?
शास्त्रो के अनुसार एक शाम के समय हनुमानजी रामसेतु के समीप बैठकर कर श्री राम जी के ध्यान में लीन थे।
उसी समय शनिदेव समुन्द्र तट के निकट आ पहुँचे। उनकी दृष्टि हनुमानजी पर पड़ी और वो उनके निकट जाकर विनम्र किन्तु कर्कश आवाज से बोले- में सूर्यपुत्र शनि हूँ, मै सृष्टिकर्त्ता के विधान से विवश हूँ ।
इस पृथ्वी पर रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति की राशि पर आकर मैं साढ़े सात वर्षों तक रहता हूँ।
आप भी पृथ्वी पर रह रहे है अतः अब में आपकी राशि पर आ रहा हूँ।
हनुमान जी बोले कि हे शनिदेव में अपने प्रभु श्री राम के ध्यान में लीन हूँ। कृपया आप उसमे व्यवधान न डाले।
शनिदेव ने कहा एक बार मैं जहाँ जाता हूँ वहाँ पर अपना प्रभाव स्थापित करके ही लौटता हूँ।
मै आपके शरीर पर आ रहा हूँ , हनुमानजी बोले ठीक है , आप आना चाहते है तो आजाइए किन्तु ये बताइए कि आप रहेंगे कहा ?
शनिदेव बोले में अपने साढेसाती के ढाई वर्ष मनुष्य के सिर पर रहकर उसकी बुद्धि विचलित करता हूं ,
फिर ढाई वर्ष उसके उदर में रहकर उसे अस्वस्थ करता हूँ ,
अंतिम ढाई वर्ष उसके पैरों में रहकर उसको दर दर भटकाता हूँ।
ऐसा कहकर वो हनुमानजी के सिर पर आकर बैठ गए ,जिससे हनुमान जी को सिर पर खूजली होने लगी उनने एक पर्वत उठाया और अपने सिर पर रख लिया।
शनिदेव बोले ये आप क्या कर रहे है में दब रहा हूँ।
हनुमानजी बोले जिस तरह आप अपना कर्म कर रहे हो में भी अपना कर्म कर रहा हूँ ।
मेरे शरीर मे प्रभु श्री राम के अलावा और कोई भी नही रह सकता है , हनुमानजी ने एक और पर्वत अपने सिर पर रख लिया।
शनिदेव बोले आप मुझ पर से ये बोझ उठा लीजिए में आपके पास कभी नही आऊँगा।
जब हनुमानजी ने चार पर्वत अपने सिर पर रखे तो शनिदेव ने कहा कि में आपसे संधि करने को तैयार हूँ।
जो आपका स्मरण करेगा में उसे कभी परेशान नही करूँगा।
हनुमानजी ने पर्वतो को हटाया और शनिदेव को दबने से जो कष्ट आघात हुआ उसके लिए हनुमानजी ने उनको तेल दिया।
जिससे उनकी पीड़ा कम हुई तबसे ही शनिदेव को तेल चढ़ाया जाता है।
इसी घटना के कारण शनि देव को तेल चढ़ाया जाता है और हनुमान जी की शरण मे जाने से शनि देव का बुरा प्रभाव समाप्त हो जाता है ।
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● शनि की साढ़ेसाती में मनुष्य को कष्ट केसे भोगना पड़ता है ?
शनि देव कर्म प्रधान और न्यायाधीश ग्रह है।
राजा को रंक और रंक को राजा कर्मो के आधार पर बनाने का कार्य मुख्यतः शनि देव का ही है ।
जिस व्यक्ति को पता चल जाए की उसको साढ़ेसाती आने वाली है। वो सुन कर ही भयभीत हो जाता है और मानसिक तनाव में चला जाता है ।
शास्त्रो के अनुसार एक समय की बात है जब सभी ग्रह में विवाद छिड़ गया की हम सब मे श्रेष्ठ कौन है।
इस समस्या को ले कर सभी ग्रह देवराज इंद्र के पास पहुंचे परंतु इंद्र इस पर अपनी राय नही देना चाहते थे।उन्होंने सलाह दी की पृथ्वी पर न्यायाधीश राजा विक्रमादित्य है जो इस समस्या का समाधान निकाल देगे।
सभी ग्रह राजा विक्रमादित्य के पास पहुंचे और इस विवाद का समाधान बताने को कहा ,राजा इस समस्या पर परेशान हो उठे।
क्योंकि वे जानते थे की जिस ग्रह को छोटा बताया वो क्रोधित हो जाएगे इस पर राजा को एक उपाय सुझा।
राजा ने सोना , चांदी ,कासा ,पीतल , सीसा , जस्ता और लोहे के सिंहासन बनवाए और उन्हें इसी क्रम में रख दिया।
फिर सभी ग्रहों से निवदेन किया की आप सभी अपने अपने सिंहासन पर बैठे। जो अंतिम बेेेठेगा वो ही सबसे छोटा होगा।
लोहे का सिंहासन सबसे आखरी में होने के कारण शनि देव उस पर बैठे और शनि देव सबसे छोटे कहलाये ।
शनि देव ने सोचा राजा ने ये जान कर किया है। उन्होंने क्रोध में आ कर राजा से कहा राजा तुम मुझे नही जानते हो।
में एक राशि पर ढाई से साढ़ेसात साल रहता हूँ। श्री राम की साढ़ेसाती पर उन्हें वनवास जाना पड़ा,
रावण की आने पर उसकी लंका जल गई अब तुम सावधान रहना ऐसा कह कर शनि देव वहाँ से चले गए।
राजा ने शनि देव के क्रोध को गंभीरता से नही लिया, परंतु राजा के मन मे शनि देव के क्रोध का डर था।
उसी समय राजा की साढ़ेसाती भी चल रही थी तभी राजा को एक उपाय सूझा कि शनि के बुरे प्रभाव से बचने के लिए क्यों ना वो जंगल मे चले जाएं ।
राजा ने ऐसा ही करा और राजा अपना राज महल छोड़ कर जंगल मे जा कर रहने लगे
जब तक उन्हें शनि की साढ़ेसाती थी वो जंगल मे ही रहे ।
साढ़ेसाती ख़त्म होने पर राजा शनिदेव से बोले कि,साढ़ेसाती होने पर भी तुम मेरा कुछ नही बिगड़ पाए।
तभी न्यायाधीश ने कहा तुम इतने महान राजा हो कर कई वर्षों तक जंगल मे रहे अपना राज साम्राज्य छोड़ कर दर दर भटके।
भूख -प्यास , सर्दी गर्मी में तुम अपना राज महल छोड़ कर परेशान हुए ये ही मेरी साढ़ेसाती का फल है ।
इस कहानी का अर्थ ये है की धरती पर कोई शनि के प्रकोप से नही बच पाया ।
जैसे जिसके कर्म होंगे न्यायाधीश उसे उसका फल अपने जीवनकाल में अवश्य देगे और अच्छे बुरे कर्मो का फल मनुष्य को इस जन्म में भोगना ही पड़ेगा ।
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●शनि देव का अपने पिता सूर्य देव से क्यों मतभेद है ?
छाया शिवभक्त थी , जब शनि देव छाया के गर्भ में थे तब छाया ने भगवान शिव की खाना-पानी छोड़ कर कड़ी धूप में भूखे प्यासे कई दिनों तक कठोर तपस्या की।
जिससे छाया के गर्भ में पल रहे शनि देव का रंग काला हो गया ।
जब शनि देव का जब जन्म हुआ ,तब सूर्यदेव ने शनि देव का काला रंग देख कर छाया पर संदेह किया की ये मेरा पुत्र हो ही नही सकता ।
छाया के कठोर जप तप करने से शनि देव के अंदर भी शक्ति आ गयी। उन्होंने क्रोधित हो कर अपने पिता को देखा जिससे सूर्य का रंग काला हो गया और उनके घोड़ो की चाल थम गई।
जिससे परेशान हो कर सूर्यदेव भगवान शिव की शरण मे गए, भगवान शिव ने सूर्य देव को उनके द्वारा की गलती का एहसास दिलाया।
सूर्य देव को अपनी गलती का एहसास हुआ और अपनी गलती की माफी मांगी
इस पर उन्हें फिर से अपना असली रूप वापस मिला ।
इस घटना के बाद ही पुत्र का अपने पिता सूर्य से वैचारिक मदभेद हुआ।
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●क्यों शनि देव की दृष्टि को अशुभ माना जाता है ?
शास्त्रो के अनुसार शनि देव भगवान श्री कृष्ण के परम भक्त थे। वे कृष्ण भक्ति में अधिकतर लीन रहते थे।
तभी शनि देव का विवाह चित्ररथ की कन्या से हुआ जो की सती , साध्वी और तेजस्वनी थी ।
विवाह पश्चात भी न्यायाधीश कृष्ण भक्ति इतना लीन रहते थे की जैसे उन्होंने पत्नी को भुला ही दिया ।
एक रात शनि देव की पत्नी उनसे संतान प्राप्ति की इच्छा के लिए आई परंतु न्यायाधीश हमेशा की तरह कृष्ण भक्ति में मग्न थे।
उनकी पत्नी प्रतीक्षा करके थक गई परन्तु वो अपनी कृष्ण भक्ति से बाहर नही आए ,
क्रोध में आ कर शनि देव की पत्नी ने उन्हें श्राप देते हुए कहा, कि इतनी प्रतीक्षा करने के पश्चात भी उन्हें एक बार भी नही देखा।
अब जिस पर भी तुम्हारी टेढ़ी दृष्टि पड़ेगी वह नष्ट हो जाएगा ।
इस कारण शनि देव अपना सिर नीचे करके रहने लगे और इसी कारण कभी शनि देव की आंखों में नही देखा जाता है ।
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