
नवरात्रि का पर्व कब मनाया जाता है
नवरात्रि मुख्य रूप से साधना,व्रत,सिद्धि के लिए मनाया जाता है।
आजकल इस पर्व को बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है।
नवरात्रि का पर्व वर्ष में 4 बार मनाया जाता है।
इसमें 2 नवरात्रि चैत्र और शारदीय नवरात्रि मुख्य रूप से सभी के द्वारा मनाए जाते है,
लेकिन 2 नवरात्रि पोष और आषाढ़ मास की नवरात्रि गुप्त होते है।
इन नवरात्रि में साधक लोग 10 महाविद्याओ की साधना में लीन रहते है एवं कठोर जप तप,
तांत्रिक क्रियाए, मंत्र सिद्धि अन्य शक्ति साधना आदि करते है।
श्री राम एक मर्यादा पुरुषोत्तम
चैत्र नवरात्रि क्यों मनाई जाती है ?
पौराणिक कथा के अनुसार महिषासुर नामक एक शक्तिशाली राक्षस था।
वह राक्षस अमर होकर अपनी शक्ति से सम्पूर्ण संसार पर अधिकार करना चाहता था।
इसी के लिए उसने ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या कर के उनको प्रसन्न किया।
तब ब्रह्मा जी ने प्रसन्न होकर जो इच्छा हो वर मांगने को कहा- महिषासुर ने अमरता का वरदान मांग लिया।
इस पर ब्रह्माजी ने बोला कि ये संसार का नियम है जिसका इस पृथ्वी पर जन्म हुआ है उसकी मृत्यु निश्चित है।
इसलिए जीवन और मृत्यु को छोड़कर कोई अन्य वर माँगो।
तब महिषासुर ने कहा कि मेंरी मृत्यु किसी पुरुष, जानवर, शस्त्र , देवता ,असुर से नही हो बल्कि हो भी तो किसी स्त्री से हो।
ब्रह्मा जी ने तथास्तु कहा और वहा से चले गए।
महिसासुर राक्षसों का राजा बन गया उसने देवताओं पर आक्रमण करने शुरू किए।
इसके कारण सभी देवता परेशान होने लगे। सम्पूर्ण देवलोक पर महिसासुर ने अपना राज कर लिया।
सभी देवताओं ने महिषासुर से रक्षा के लिए भगवान विष्णु के साथ देवी की आराधना की।
तब एक दिव्य रोशनी निकली, सभी देवताओं ने देवी को अलग अलग अस्त्र-शस्त्र अलंकार आदि देकर सुशोभित किया, और देवी की आराधना की।
महिषासुर देवी के रूप को देख के मोहित हो गया ओर उसने देवी से विवाह का प्रस्ताव रख दिया।
देवी ने प्रस्ताव स्वीकार किया लेकिन एक शर्त रखी कि महिषासुर को पहले युद्ध मे देवी से जितना होगा।
तब ये युद्ध 9 दिन तक चला अंत मे 10 वे दिन देवी ने महिषासुर का वध कर दिया।
इसी कथा के अनुसार चैत्र की नवरात्रि पर देवी की पूजा आराधना की जाती है ताकि देवी मानव के सभी कष्टों को दूर कर दे।
शारदीय नवरात्रि क्यों मनाई जाती है ?
त्रेता युग मे जब रावण सीता माता का हरण कर के लंका ले जाता है,
तब लंका पर चढ़ाई से पहले मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम देवी शक्ति की पूजन करते है 9 दिन पूर्ण होने पर देवी जगदम्बा प्रकट हो गई थी।
इसीलिये नवरात्रि का पर्व मनाया जाता रहा है।
इस पर्व में माँ की आराधना का विशेष महत्व है जिससे प्रसन्न होकर माँ सभी के कष्टों को दूर करती है।
दसवे दिन भगवान राम ने रावण का वध किया इसलिए दसवे दिन दशहरा मनाया जाता है।
9 दिन तक पूजा भक्ति आराधना का अधिक महत्व है। शारदीय नवरात्रि को अधिक धूमधाम से मनाया जाता है।
इस वर्ष शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 7 अक्टूबर 2021 से होकर के 14 अक्टूबर 2021 गुरुवार के दिन समापन होगा।
इसी दिन दशहरा भी मनाया जाएगा।
इस वर्ष माँ डोली में सवार होकर आ रही है। जो कि शुभ माना जाता है ।
घट स्थापना विधि :-
नवरात्रि के प्रथम दिन घट स्थापना की जाती है।
प्रातःकाल उठकर स्नान आदि कर के घर को स्वच्छ करे एवं घट स्थापना शुभ मुहूर्त में करे।
ईशान कोण में साफ सफाई कर के लकड़ी की चौकी रखे उस पर लाल कपड़ा बिछाए।
माता की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करे।
अपने बाएँ ओर घी का दीपक प्रज्वलित करे।
मिट्टी के एक बड़े बर्तन में मिट्टी भरे थोड़ा पानी डालकर उसमे जौ डाल दे।
एक कलश ले उसमें शुद्ध जल भर ले कलश को मिट्टी के ऊपर स्थापित कर दे।
कलश की कुमकुम,अक्षत, मोली बांधकर विधिवत पूजा करे।
कलश में 2 लौंग, 1 सुपारी, 1 सिक्का डाले,आम के पांच पत्तो को कलश में रखकर पत्तो के ऊपर चुनरी ओर मोली से बंधा हुआ नारियल रखे।
सबसे पहले गणेश जी की पूजा करे फिर कलश पर स्वस्तिक बनाए।
भैरव बाबा के रूप में मिट्टी के एक छोटे पात्र में गेहूं रखे उस पर एक सिक्का सुपारी रख के भैरव स्वरूप मानकर पूजन करे।
अब माता का ध्यान कर के उनकी पूजा करे, पुष्प ,मौली, प्रशाद, लौंग, इलायची,फल, चुनरीआदि भेट करे। माँ की आरती कर के भोग लगाएं।
इस वर्ष घट स्थापना का शुभ मुहूर्त 06:17 से 07:50 तक रहेगा वही अभिजीत मुहूर्त 11:51 से लेकर 12:38 तक रहेगा।
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कन्या पूजन का महत्व
नवरात्रि में कन्या पूजन करना पूर्ण फल की प्राप्ति होने के लिए आवश्यक माना जाता है।
कन्या पूजन के लिए दो से दस वर्ष तक की कन्याओं को लिया जाता है।
अलग अलग वर्ष की कन्याओं का अलग महत्व होता है।
कन्याओं में ही देवी का स्वरूप मानकर पूजा की जाती है।
दो वर्ष की कन्या को ‘कुमारिका’ कहा जाता है उनकी पूजा से आयु, धन ,बल की प्राप्ति होती है।
तीन वर्ष की ‘त्रिमूर्ति’ के पूजन से सुख समृद्धि , चार वर्ष की कन्या ‘कल्याणी’ के पूजन से विवाह में आ रही बाधा दूर होती है।
पांच वर्ष की ‘रोहिणी’ से स्वास्थ्य लाभ , छह वर्ष की कन्या ‘कालिका’ से शत्रु से मुक्ति मिलती है।
सात वर्ष की ‘चंडिका’ पूजन से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
आठ वर्ष की ‘शाम्भवी’ ओर नो वर्ष की ‘दुर्गा’ पूजा से दुःख ,दरिद्रता, रोग का नाश होता है।
दस वर्ष की कन्या पूजन से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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